पानी से सीखिए जीने का हुनर
कभी तंग गलियों से गुज़रना
कभी ऊंचाइयों से गिरना
तमाम गंदगी सहते हुए
राह के रोड़ों से लड़ते हुए
हर हालात में ख़ुद को ढाल लेना
और हर पल आगे बढ़ते जाना
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पानी से सीखिए जीने का हुनर
कभी तंग गलियों से गुज़रना
कभी ऊंचाइयों से गिरना
तमाम गंदगी सहते हुए
राह के रोड़ों से लड़ते हुए
हर हालात में ख़ुद को ढाल लेना
और हर पल आगे बढ़ते जाना
एकदुम सही पोस्ट
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तहे दिल से शुक्रिया Meenakshi Bhatt Ji
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पानी से सीखिये -अति सुंदर कविता।
सागर ने कहा, मुझ सरिता से,
अकाट्य सत्य है, प्राण अंत
मुझमें मिलने का विचार करो,
क्षणिक सुधा रस प्रेम का,
हृदय-वरण व्यवहार करो।
मैंने कहा, तनिक धीर धरो,
अभी तो सृष्टि निर्मित ही हुयी,
मेरी व्यथा न आरम्भ हुयी,
इस जग का अत्याचार सहनकर
अंतकथा न प्रारम्भ हुयी।
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क्या बात !!!
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इतनी सुंदर कविता लिखी है आपने जिस के बारे में क्या बोलूं बहुत ही अच्छी लिखी आपने गुड वेरी गुड बहुत ही सुंदर
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Thanks
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